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बीते बिहार विस चुनाव में भाजपा को धूल चटाने वाले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव फिर एक बयान को लेकर चर्चा में हैं। इस बार वह मानव मूत्र यानी पेशाब को एंटीसेप्टिक डेटॉल से भी अधिक प्रभावी बताने के चलते सुर्खियों में हैं। जैसा कि होता है- लालू के हर बयान को लेकर एक बख्ोड़ा शुरू हो जाता है और विपक्षी नेता उनका मजाक उड़ाने से नहीं चूकते। इस बार भी यही हुआ। लालू के इस बयान को मजाक के रूप में ही लिया गया, लेकिन वास्तव में देखा जाए तो लालू की यह बात हवा में उड़ाने लायक नहीं थी। अगर लालू चाहें तो गाय, गोमूत्र और गाय के गोबर की राजनीति करने वाली भाजपा के खिलाफ इसे हथियार बना सकते हैं और यूपी सहित आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर नया मुद्दा खड़ा सकते हैं। आइए देखते हैं कि गोमूत्र के बजाय मानव मूत्र के इस्तेमाल की वकालत भाजपा के लिए कैसे भारी हो सकती है?
बात सबसे पहले भाजपा की ही करते हैं, जिसने गाय और गोमूत्र की राजनीति शुरू की। 2०14 के लोकसभा चुनाव में बहुमत की सरकार बनाने के बाद भाजपा ने इस पर अमल करना भी शुरू कर दिया। छुटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो बड़े पैमाने सबसे पहले इसकी शुरुआत मेनका गांधी ने की। मार्च 2०15 में बतौर महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती गांधी ने अपने कैबिनेट सहकर्मियों को पत्र लिख कर कहा कि वे सरकारी दफ्तरों में फिनाइल के बजाय गोमूत्र से बने गोनाइल का इस्तेमाल करें। मेनका ने तर्क दिया कि फिनाइल से गोनाइल अधिक कारगर है और पर्यावरण के लिहाज से भी अच्छा है। उल्लेखनीय है कि अभी तक सरकारी दफ्तरों में फर्श या टॉयलेट साफ करने के लिए फिनाइल का ही इस्तेमाल किया जाता रहा है। दूसरा बड़ा मामला तब हुआ जब देश भर में गोमांस पर प्रतिबंध की वकालत हुई, जिसकी परिणति बिसाहड़ा कांड के रूप में हुई। यह वही विसाहड़ा है, जहां बीते दिनों गोमांस की झूठी अफवाह पर गांव के मो. अखलाक की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। इसको लेकर देशभर में बवाल शुरू हो गया लेकिन राजनीति यहीं नहीं रुकी। गांव के मंदिर की पुजारिन हरिसिद्धि गिरि ने बिसाहड़ा गांव का गोमूत्र व गंगाजल से शुद्धिकरण करने की घोषणा नया बख्ोड़ा खड़ा कर दिया।
बिहार चुनाव में भी गोमांस को लेकर जमकर राजनीति हुई, जिसमें भाजपा को मुंह की खानी पड़ी। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कण्डेय काटजू ने भी भाजपा पर तंज कसा था। उन्होंने कहा कि देश में इतनी महंगाई बढ़ गई है कि आज से आप गोमूत्र पीजिए और गोबर खाइए। कहने की जरूरत नहीं कि गोमांस, गाय का गोबर व गोमूत्र का इस्तेमाल भाजपा का एक खास मुद्दा है।
अब यह देखते हैं कि लालू के मानव मूत्र वाले बयान में कितना दम है और यह गोमूत्र की राजनीति के खिलाफ कितना कारगर हो सकता है? इस पर चर्चा करने से पहले आपको एक ऐतिहासिक सच्चाई बताते हैं। भूतपूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई स्वयं अपना मूत्र पीते थ्ो। वह मानव मूत्र को तमाम बीमारियों के इलाज का सबसे कारगर मंत्र मानते थ्ो। इसी तरह आपने ‘मैन वर्सेस वाइल्ड फेम’ एडवर्ड माइकल बेयर ग्रिल्स को अपना मूत्र पीते हुए देखा होगा। अब लालू ने क्या कहा, इस पर गौर करें। लालू ने कहा, ‘कहीं पैर कट गया, कहीं चोट लग गई या कहीं खून गिर रहा है… कोई दवाई थी उस समय… बोलिए? हम लोगों के लिए पेशाब ही डेटॉल का काम करता था। जहां भी कट जाता था, वहां धड़ से पेशाब कर देते थ्ो। पेशाब से कोई कीटाणु नहीं बचता। पेशाब में जख्म को तुरंत भरने की ताकत होती है।’ हकीकत में देखा जाए तो पेशाब या मानव मूत्र का इतना ही नहीं, इससे भी कहीं अधिक उपयोग है। गोमूत्र व गाय के गोबर के उपयोग की जितनी चर्चा की जाती है तो उससे किसी भी मामले में कम उपयोगी नहीं है मानव मूत्र।
यहां स्वमूत्र चिकित्सा की चर्चा बेहद प्रासंगिक है। इसके माध्यम से कई असाध्य बीमारियों का उपचार संभव है। इसके अंतर्गत छह चीजें आती हैं- स्वमूत्र से मालिश, स्वमूत्रपान, स्वमूत्र व जल के साथ उपवास, स्वमत्र की पट्टी रखना, स्वमूत्र के साथ अन्य प्राकृतिक पदार्थों का सेवन और स्वमूत्र को सूर्य किरण देकर प्रावीष्ठ। इसमें वह सारे लाभ आ जाते हैं, जो गोमूत्र को लेकर बताये जाते हैं। स्वमूत्र चिकित्सा के बारे में कहा जाता है कि जो भी इसे अपना ले, कोई बीमारी उसे छू भी नहीं सकती। इसके अलावा मानव मूत्र का इस्तेमाल कई कॉस्मेटिक्स और मेडिकल थ्ोरेपीज में होता है। आज भी माना जाता है कि अगर किसी जंगल में भटक गए हों और आपने काफी समय से पानी न पिया हो, तो अपना मूत्र पिएं। ऐसी स्थिति में मूत्र में नमक की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, जिससे आपका डिहाइड्रेशन और बढ़ता है। पुराने समय की बात करें तो रानी एलिजाबेथ प्रथम के शासनकाल (1558-16०3) में कपड़े रंगने के लिए काफी दिनों का इकट्ठा किया मानव मूत्र इस्तेमाल में लाया जाता था, वहीं रोमवासी भी चमड़े को रंगने, ऊन और लिनन की ब्लीचिंग के लिए मूत्र का ही प्रयोग करते थ्ो। रोम के लोग तो अपने मूत्र से गरारे करते थे। उनका मानना था कि मूत्र में मौजूद अमोनिया से दांत सफेद होते हैं। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान कनाडा के सिपाही रूमाल को अपने मूत्र में भिगोकर उसे गैस मास्क की तरह इस्तेमाल करते थे। टेक्नोलॉजीज नाम की एक कंपनी मानव मूत्र से ही बिजली बनाती थी। यह कंपनी अमोनिया की जगह मूत्र का उपयोग हाइड्रजन बनाने में करती थी। 193० के दशक में जब पेनिसलिन बहुत कीमती हुआ करती थी तब जो मरीज पेनिसलिन कन्ज्यूम करते थे, उनके मूत्र में से उसे निकालकर संरिक्षत किया जाता था।
इस तरह देख्ों तो मानव मूत्र के एक नहीं, सैकड़ों उपयोग हैं। ऐसे में यह सवाल हो सकता है जब भाजपा गोमांस, गोमूत्र व गाय के गोबर को राजनीतिक हथियार बना रही हैं, तब लालू के बयान के बहाने विपक्षी नेता मानव मूत्र के इस्तेमाल पर क्यों जोर नहीं दे सकते? यहां यह सवाल भी उठ सकता है कि जब हमें मूत्र ही इस्तेमाल करना है तो हम मानव मूत्र का क्यों न इस्तेमाल करें? यह अभियान भी चलाया जा सकता है कि लोग गोमूत्र के बजाय अपने मूत्र का ही इस्तेमाल करें। यह इसलिए भी क्योंकि मानव मूत्र गोमूत्र व गाय का गोबर से अधिक गुणकारी है। सबसे बड़ी बात यह है कि मानव मूत्र का इस्तेमाल बिजली बनाने के लिए किया जा सकता है। रेलवे, बस स्टेशनों सहित तमाम सार्वजनिक स्थानों पर पेशाब की बड़ी समस्या होती है। इसको लेकर पेशाब को संरक्षित करने का मुद्दा भी उठाया जा सकता है, जिसका उपयोग बिजली बनाने में किया जा सकता है। इसमें शक नहीं कि अगर गोमूत्र के मुकाबिल विपक्षी पार्टियां मानव मूत्र का मुद्दा उठाएं तो भाजपा को असहज स्थिति में ला सकती हैं। हालांकि यह सब इतना आसान नहीं है, लेकिन अगर एक रणनीति के तहत काम किया जाए तो कुछ भी संभव है।
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