Menu
blogid : 3028 postid : 763953

क्योंकि गरीब ही बने रहना चाहता है भारत

vakrokti
vakrokti
  • 33 Posts
  • 117 Comments

दुनिया में गरीबी को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने 16 जून को एक ताजा रिपोर्ट जारी की, जिसके अनुसार भारत में गरीबों की तादाद अन्य देशों के मुकाबले सबसे अधिक है। 1999 से 2010 के बीच 11 सालों में दक्षिण पूर्व एशिया में गरीबी की दर 45 प्रतिशत से घटकर 14 प्रतिशत तक पहुंच गई, लेकिन भारत में यह दर 32.9 प्रतिशत है। यह संख्या चीन, नाइजीरिया और बांग्लादेश के गरीबों से भी अधिक है। यहां एक सवाल उठता है कि जब भारतीय दुनिया में सबसे अधिक बुद्धिमान और परिश्रमी हैं, तब हमारा देश इतना गरीब कैसे है? हमारा देश कृषि उत्पादक है और यहां अच्छी जलवायु होने के साथ ढेर सारे प्राकृतिक संसाधन भी हैं, फिर भी उत्पादकता के मामले में हम पीछे क्यों है?
हिंदीसमय पर आज सुबह ही चंद्रकांत देवताले की एक कविता ‘दुनिया का सबसे गरीब आदमी’ पढ़ रहा था कि गरीबी की रिपोर्ट पर यही सोच रहा था। मैंने वह कविता कई बार पढ़ी। ‘गर्वीली गरीबी’ और ‘अमीरी के आंकड़े’ के बीच यह कविता मुझे बेहद दिलचस्प लगी- दुनिया का सबसे गरीब इनसान ध्कौन होगा ध् सोच रहा हूँ उसकी माली हालत के बारे में… फेहरिस्तसाजों को ध् दुनिया के कम से कम एक लाख एक ध् सबसे अंतिम गरीबों की ध् अपटुडेट सूची बनाना चाहिए ध् नाम, उम्र, गाँव, मुल्क और उनकी ध् डूबी-गहरी कुछ नहीं-जैसी संपति के तमाम ध् ब्यौरों सहित… दुनिया के सत्यापित सबसे धनी बिल गेट्स का फोटो ध् अखबारों के पहले पन्ने पर ध् उसी के बगल में जो होता ध् दुनिया का सबसे गरीब का फोटू ध्तो सूरज टूट कर बरस पड़ता भूमंडलीकरण की तुलनात्मक हकीकत पर ध्रोशनी डालने के लिए ध् पर कौन खींचकर लाएगा ध् उस निर्धनतम आदमी का फोटू ध्सातों समुंदरों के कंकड़ों के बीच से ध्सबसे छोटा-घिसा-पिटा-चपटा कंकड़ ध्यानी वह जिसे बापू ने अंतिम आदमी कहा था… इस पूरी कविता का मजमून यही है कि जो भी आंकड़े व रिपोर्ट है, वह सिर्फ ‘तरक्की की आकाशगंगा’ में इक्कीसवीं सदी की छाती पर बस एक हास्यास्पद दृश्य है और जिससे दुनिया का सबसे गरीब आदमी हलकान है। एक तरफ संयुक्त राष्ट्र भारत को सबसे गरीब बताता है तो दूसरी ओर हमारे देश की सरकार गरीबी हटाने के बजाय गरीबों की संख्या घटाने का खेल खेलती है। लोकसभा चुनाव 2014 से पूर्व मनमोहन सरकार ने गरीबी घटाने का सेहरा अपने सिर बांधते हुए देश में मात्र 26.9 करोड़ गरीब होने का दावा किया था। सरकार ने वास्तविक संख्या से करीब 10 करोड़ गरीब कम दिखाए। रंगराजन समिति के फार्मूला के अनुसार, वर्ष 2011-12 में देश में 29.5 प्रतिशत गरीबी थी जो 2009-10 की अपेक्षा 8.7 प्रतिशत कम थी। इस तरह दो साल की अवधि में गरीबों की संख्या 45.4 करोड़ से घटकर 36.3 करोड़ रह गई। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने गरीबी का आकलन तेंदुलकर के गरीबी फार्मूला के आधार पर किया था। तेंदुलकर फार्मूला के अनुसार 2009-10 में गरीबी 29.8 प्रतिशत थी जो 2011-12 में कम होकर 21.9 प्रतिशत रह गई। यूपीए सरकार का कहना था कि तेंदुलकर फार्मूले के आधार पर देश में गरीबों की संख्या 35.4 करोड़ से कम होकर 26.9 करोड़ हुई है।
दरअसल, इसके कई कारण हैं जो भारत को गरीब और अमेरिका, चीन सहित अन्य देशों को अमीर बनाते हैं। भारत अपनी औपनिवेशिक वजहों से गरीब है। एक समय एशियन टाइगर्स या चीन की स्थिति भारत की ही तरह थी, लेकिन बीते 45 सालों में इन देशों ने भारत को बहुत पीछे छोड़ दिया है। टाई के बोर्ड आॅफ ट्रस्टी के पूर्व चेयरमैन व भारत अमेरिकी वेंचर कैपिटल फंड इंवेस्ट कैपिटल पार्टनर्स के प्रबंध निदेशक कंवल रेखी इस मामले को बिल्कुल अलग ही नजरिए से देखते हैं। उनका मानना है कि भारत जान-बूझकर गरीब है और वह गरीब बने रहने के लिए कड़ी मेहनत करता है। इसके विपरीत अमेरिका अमीर इसलिए है क्योंकि वह न केवल अपनी संपत्ति को बनाए रखने के लिए बल्कि हर रोज खुद को ज्यादा धनवान बनाने के लिए कठोर परिश्रम करता है। भारत गरीब इसलिए है क्योंकि उसने खुद को आत्मघाती रूप से गरीबी पर पूरी तरह केंद्रित कर रखा है। देश के अथाह संसाधनों का इस्तेमाल गरीबों को आर्थिक सहायता और रोजगार मुहैया करवाने में किया जाता है। यहां आम भारतीयों के दृष्टिकोण की चर्चा भी समीचीन है। भारत में नौकरियों को ‘वरदान’ माना जाता है, वहीं अमेरिका में उत्पादकता को अधिक महत्व दिया जाता है। कहने का मतलब यह है कि उत्पादकता से मिलने वाले फायदों के लिए किए जाने वाले अथक प्रयास ही अमेरिकी समृद्धि का कारण हैं, जबकि ‘नौकरी’ के पीछे भागना भारतीयों को ‘गरीब’ बनाता है। इसे और स्पष्ट रूप में कहें तो अमेरिका उस राजनीति का अनुसरण करता है जिससे संपत्ति का सृजन होता है, जबकि भारत उस राजनीति के पीछे बढ़ता है जिसमें संपत्ति का पुनर्वितरण होता है। राष्ट्रीय संपदा के अभाव में भारत गरीबी का पुनर्वितरण करता है और गरीब ही बना रहता है। भारत में ‘जॉब’ एक ऐसी चीज है जिस पर जरूरत से ज्यादा ध्यान दिया जाता है। सरकार सहित मंत्रियों और नौकरशाहों सबसे बड़ा काम होता है रोजगार उपलब्ध करवाना। भारत के ज्यादा समृद्ध बनने का एक ही तरीका है कि वह अपनी श्रम शक्ति और भौतिक पूंजी की उत्पादकता पर अपना ध्यान केंद्रित करे। यह एक गलत धारणा है कि उत्पादकता बढ़ाने से बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बढ़ेगी। जब हम आर्थिक विकास दर में 6 फीसदी बढ़ोतरी की बात करते हैं और हमारी आबादी 2 फीसदी की दर से बढ़ रही है, तब हम अपनी मानव पूंजी की उत्पादकता में 4 फीसदी इजाफे की बात कर रहे हैं।
कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि भारत अपनी गलत आर्थिक नीतियों और दृष्टिकोण के कारण गरीब है। हम अपनी संपदा अनुत्पादक कामों में जाया कर रहे हैं। हमने अपने यहां उद्यमियों का दमन किया है और नौकरशाहों की ताकत में इजाफा किया है। सरकार ने जिस उद्योग को छूआ उसने उसे अनुत्पादक बना दिया। हमने अपने लोगों को मछली खाना तो सिखा दिया लेकिन यह नहीं सिखाया कि खाने के लिए उसे पकड़ते कैसे हैं। क्या हमने इसी पैसे का इस्तेमाल लोगों को शिक्षा देने में किया? भारत के पास वह सब कुछ है जो एक महाशक्ति बनने के लिए जरूरी है, लेकिन इसके लिए बहत बड़े पैमाने पर राजनैतिक इच्छाशक्ति के साथ ही प्रभावी नेतृत्व की दरकार होगी।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh